देश के संविधान एवं जनतंत्र को बचाने के लिए समाजवादियों को अपने महानायकों से प्रेरणा लेकर नए सिरे से एकजुट होकर संघर्ष करना पड़ेगा। शुक्रवार को प्रारम्भ हुए समाजवादी समागम के उद्घाटन सत्र में वक्ताओं ने यह संकल्प दोहराया।
जेएनयू के प्रोफेसर, समाज विज्ञानी डॉ आनंद कुमार ने कहा कि समाजवाद की सही मायने में परिभाषा संपत्ति का सामाजिक स्वामित्व, गरीबी और गैरबराबरी को खत्म करना, गरीबों – वंचितों – दलितों – पिछड़ो – आदिवासियों के हितो के लिए लड़ना है। उन्होंने ने रोजगार के अधिकार को राष्ट्रीय मान्यता देने की मांग की और इस बात पर जोर दिया कि गांधीजी के नेतृत्व में आज़ादी के आंदोलन ने रचनात्मक कार्यक्रमों को प्राथमिकता दी, वैसी ही प्राथमिकता समाजवादी आंदोलन के लोग भी इन कार्यक्रमों को दें।
उद्घाटन सत्र में स्वागत भाषण देते हुए शिक्षाविद और मध्य प्रदेश के पूर्व शिक्षा मंत्री रामशंकर सिंह ने कहा कि समाजवादी विचार और सिद्धांत आज भी उत्कृष्ट व सर्वमान्य हैं। परन्तु इनके प्रचार – प्रसार के लिये सबको अपनी – अपनी जगह पर डटकर काम करना पड़ेगा। उन्होंने कहा कि पिछले तीन दशक में समाजवाद के नाम पर सत्ता में पहुँचे लोगों ने परिवारवाद, जातिवाद व वंशवाद के कारण इस सूंदर विचार की एक विकृत छवि बना दी है। इस छवि को सुधारना समय की जरुरत है रमाशंकर सिंह ने पर्यावरण व हरियाली के मुद्दे को समाजवादियों के कार्यक्रम में शामिल करने की जरुरत बताते हुए कहा कि युवाओं को समाजवाद के सिद्धांत के परिचित करने की आवश्यकता है।
प्रोफेसर राजकुमार जैन ने अध्यक्षीय भाषण में कहा कि समाजवादियों का एक गौरवशाली संघर्ष का इतिहास रहा है। नई पीढ़ी को विभिन्न रचनात्मक कार्यकर्मो के जरिये एक गौरवशाली इतिहास के परिचित करना चाहिए एवं विभिन्न मुद्दों पर आंदोलन चलने के लिए सामान विचार के लोगों, संगठनों व दलों के बीच संभव एकता कायम करनी चाहिए।
हिन्द मजदूर सभा के नेता हरभजन सिंह सिद्धू ने कहा कि मौजूदा सरकार श्रम कानूनों को कमजोर कर ऐसी स्थिति निर्मित कर रही है जिसमे मेहनतकश वर्ग की दुर्गति निश्चित है। अंग्रेजी राज से भी बदतर हालात होने जा रहे हैं। ऐसी स्थिति बनाई जा रही है की वर्किंग क्लास न संगठन बना सकेगा न अपने हक़ के लिए शांतिपूर्ण आंदोलन कर सकेगा। सिद्धू ने कहा की समता की कामना करने वाले संगठन व दलों को ऐसी जनविरोधी नीतियों के खिलाफ एकजुट होकर संघर्ष करना समय की मांग है। एक ओर सरकार सार्वजानिक क्षेत्र के उद्योगों को समाप्त कर रक्षा सहित कई क्षेत्र बहुराष्ट्रीय कंपनियों के लिए सुविधाजनक बना रही है, दूसरी और जनविरोधी नीतियों के खिलाफ आवाज़ उठानेवालों को तरह – तरह के आरोपों से जेल में डालने का काम कर रही है।